जयशंकर प्रसाद हिन्दी के छायावादी दौर के महत्त्वपूर्ण रचनाकार है। उनका कृतित्व केवल कविता तक सीमित नहीं है, अपितु वे हिन्दी के सुप्रसिद्ध नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार एवं निबंधकार भी हैं। एक ओर जहाँ वह झरना, आँसू, लहर, जैसी कविता लिख कर कल्पना को भावात्मक अभिव्यक्ति तक पहुँचाते हैं और कामायनी लिख कर वह अपने दर्शन को वाणी देने का काम करते हैं, वहीं दूसरी ओर अपने गद्य साहित्य में वे इतिहास और कल्पना का अद्भुत सामजस्य स्थापित करते हैं।
प्रसाद जी के साहित्य में हमें कई विधागत रूप दिखाई पड़ते है। उन्होंने अपने जीवन-काल में 12 नाटकों- सज्जन, करूणालय, राजश्री, प्रायश्चित, विशाख, अजातशत्रु, जनमेयजय का नागयज्ञ, कामना, स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिन की रचना की। इसके अतिरिक्त 3 महत्त्वपूर्ण उपन्यासों - कंकाल, तितली, इरावती(अपूर्ण) का सृजन किया। इसके अलावा प्रसाद जी के 5 कहानी संग्रह- छाया, प्रतिध्वनि,आकाशदीप,आंधी, इंद्रजाल प्रकाशित हुए। चिंतन के क्षेत्र में भी उन्होंने लेखन कार्य किया और “काव्य-कला तथा अन्य निबंध” शीर्षक से उनके निबंधों का संग्रह प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा यदि काव्य की बात की जाए तो झरना,आंसू,लहर, कामायनीउसकी छायावाद की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं |
जयशंकर प्रसाद के साहित्य को पढ़ने के उपरांत हम पाते हैं कि उन्होंने अपने अधिकांश साहित्य को ऐतिहासिक कलेवर में रचा हैं। उनके सभी नाटक भारत के स्वर्णिम अतीत की महिमा का गान करते हुए प्रतीत होते हैं। महाभारत से लेकर हर्षवर्धन तक के काल को उन्होंने अपने नाटकों का आधार बनाया है। यही कारण है कि उन्हें कई आलोचकों ने पुनुरुत्थानवादी कहा। प्रेमचंद ने उनपर गड़े मुर्दे उखाड़ने का आरोप तक लगाया। अब प्रश्न उठता हैं कि क्या जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में इतिहास है? या उसके पीछे प्रसाद जी की कल्पना दृष्टि कार्य करती हैं। उनके नाटक ध्रुवस्वामिनी के माध्यम से हम यह बात बड़ी आसानी से समझ सकते हैं। यह नाटक भी प्रसाद जी ने ऐतिहासिक कलेवर में रचा है। किन्तु अपने क्लीव और स्खलित पति रामगुप्त के प्रति ध्रुवस्वामिनी का विरोध मात्र इतिहास का तथ्य नहीं है। इस नाटक में प्रसाद जी रामगुप्त के विरुद्ध क्रांति करवाते हैं, उसे राज्याधिकार से वंचित करवाते हैं। यहाँ प्रसाद जी की दृष्टि इतिहास से अधिक उन सांस्कृतिक मूल्यों पर है जहाँ वह नारी को अपने जीवन पर स्वयं अपना पूरा अधिकार दिलाना चाहते हैं। और दूसरी ओर एक कायर क्लीव एवं विलासी शासक देश का कितना अहित कर सकता है, यह दिखलाना भी उनका उद्देश्य है। इस नाटक के माध्यम से हम देखते हैं कि किस प्रकार प्रसाद जी एक ढांचा तो इतिहास से खड़ा करते हैं किन्तु एक छायावादी साहित्यकार होने के नाते उसका अर्थ कल्पना द्वारा सृजित करते हैं। वह केवल इतिहास का कोरा चित्रण अपनी रचना में नहीं करते अपितु कल्पना द्वारा वह अपने अतीत का पुनर्सृजन करते हुए अपने साहित्य में वर्तमान परिवेश को अभिव्यक्त करते हैं।
साहित्य और इतिहास का गहरा सम्बन्ध होता है। एक इतिहासकार जहाँ तथ्यों द्वारा अपनी बात को पुष्ट करता हैं वहीं एक साहित्यकार इतिहास के तथ्यों के माध्यम से कल्पना द्वारा अपने समय को अभिव्यक्त करता है। इतिहासकार ‘ई.एच कार’ मानते हैं कि “इतिहास, इतिहासकार और उसके तथ्यों की क्रिया-प्रतिक्रिया की एक अनवरत प्रकिया है, अतीत और वर्तमान के बीच एक अंतहीन संवाद है।” [1] साहित्यकार अपनी रचना द्वारा अतीत और वर्तमान के इस संवाद को अपनी कल्पना से सुसज्जित करता है। हिंदी साहित्य में हमें साहित्यकारों की एक लम्बी परम्परा दिखाई पड़ती हैं जिन्होंने अपने साहित्य को ऐतिहासिक कलेवर में रचा हैं। प्रसाद भी अपने साहित्य में इसी तत्त्व को दर्शाते हैं और अपनी कल्पना द्वारा वह अपने समय को वाणी देने का काम भी करते हैं।
प्रसाद जिस समय के रचनाकार हैं वह हिंदी साहित्य का छायावाद का काल है। यूरोप के ‘रोमांटिसिस्म’ और कॉलरिज, वर्ड्सवर्थ के कल्पना सिद्धान्त का गहरा प्रभाव छायावादी कवियों पर पड़ा। यह भी एक महत्त्वपूर्ण कारण हैं जिसका प्रभाव हमें प्रसाद के साहित्य पर प्रदर्शित होता हुआ दिखाई पड़ता है। उनके द्वारा रचित तीनों उपन्यास सामजिक अंतर्वस्तु और कल्पना को आधार बना कर लिखे गये हैं। नंददुलारे वाजपेयी उनके उपन्यासों के सम्बन्ध में लिखते हैं कि “दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक भूमि के विस्तार के साथ ही प्रसाद जी ने सामाजिक क्षेत्र में भी नए स्वतंत्र और नवीन आदर्शों का प्रवेश कराया जिसकी झलक हमें उपन्यासों में मिलती हैं।”[2] अतः अपने उपन्यास कंकाल में जहाँ वह नारी की समस्या को अभिव्यक्त करते हैं और हिन्दू धर्म की दुराचारिता को प्रदर्शित करते हैं साथ ही अपने समय की समस्याओं को उजागर करने का काम करते हैं, वहीं ‘तितली’ में हमें उसकी कल्पना शक्ति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं। ‘इरावती’ में भी इतिहास और कल्पना का सामजस्य साफ प्रदर्शित होता है।
प्रसाद की अधिकतर कहानियाँ ऐतिहासिक कलेवर में रची गयी हैं किन्तु उसके पीछे उनकी कल्पना को साकार रूप देती प्रदर्शित होती हैं।
“पुरस्कार” कहानी की मधुलिका हो या “आकाशदीप” कहानी की चंपा यह उनकी कल्पना का ही सौन्दर्य था कि वह स्त्री को इतनी शक्ति दे पाए कि वह स्वेच्छा से अपना निर्णय ले सके। अतः उनकी लगभग सम्पूर्ण कहानियाँ इतिहास के आवरण में वर्तमान की प्रतीति करवाती हैं।
प्रसाद के समय भारत पर अंग्रेजी सत्ता की हुकूमत थी और लेखन की मुक्त अभिव्यक्ति कठिन थी। औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ लिखे जा रहे साहित्य पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा था। ऐसे में साहित्यकार अपनी अतीत की घटनाओं और ऐतिहासिक पात्रों को वर्तमान की समस्याओं को रेखांकित करने के लिए चुनता रहा है। चूँकि साहित्य का सम्बन्ध कल्पना से होता है और साहित्यकार के समक्ष उसकी वर्तमान परिस्थिति उसके अतीत से भिन्न होती है इसलिए घटनाओं को लेखक अपनी कल्पना द्वारा वर्तमान परिस्थिति में ढालकर अभिव्यक्त करता है। प्रसाद भी इसी प्रकार इतिहास के चरित्रों में आपकी कल्पना का संयोग करके जो कथा प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं उसकी गूंज हमें उसके समकालीन समय की अभिव्यक्ति प्रदान करती है। इसका एक उदाहरण हमें चन्द्रगुप्त नाटक में दिखाई पड़ता हैं जब प्रसाद एक विदेशी पात्र कार्नेलिया से भारत की प्रशंसा में यह गीत प्रस्तुत करवाते हैं |
अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहाँ पहुँचकर अनजान क्षितिज को मिलता है सहारा [3]
यह गीत प्रसाद की कल्पना का उदाहरण है। अतः हम कह सकते हैं कि जयशंकर प्रसाद के साहित्य में इतिहास और कल्पनात्मक स्वरूप का विस्तार उनके सम्पूर्ण साहित्य में दिखाई पड़ता है | फिर वह कामायनी हो चन्द्रगुप्त हो या पुरस्कार कहानी |
लेखिका शिवानी सक्सेना, दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं| उन्होंने अपना शोधकार्य दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पूर्ण किया | इनकी रूचि साहित्य के उपन्यास विधा में रही | साहित्य की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में इनके लेख प्रकाशित होते रहें हैं | UGC की परियोजना ई.पी.जी पाठशाला में भी इन्होंने कार्य किया |
[1] ई.एच कार, इतिहास क्या है,पृष्ठ संख्या 12, मैकमिलन प्रकाशन दिल्ली
[2] नंददुलारे वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, पृष्ठ संख्या 26, लोकभारती प्रकाशन
[3] चन्द्रगुप्त नाटक, जयशंकर प्रसाद, राजकमल प्रकाशन दिल्ली