न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
ज्ञान के समान पवित्र इस संसार में कुछ नहीं है।।
There is nothing more pure in this world than knowledge(Gyana)
‘सृजन’ मनुष्य की अनिवार्य वृत्ति है। सृजनरत मनुष्य ही समाज को कई आयाम प्रदान कर सकता है। सृजनहीनता समाज को जड़ता की ओर ले जाती है। मानव सृजनशील कई संदर्भों में हो सकता है, साहित्य भी नित्य नये सृजन की मांग करता है। साहित्य ही मनुष्य का निर्माण करता है। इसी उद्देश्य से वर्ष 2017 में हिंदी विभाग द्वारा हिंदी साहित्य संस्था “सृजन” की शुरुआत हुई। इस संस्था का उद्देश्य सदैव ही विभाग के विद्यार्थियों के साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना रहा है।
सृजन साहित्य संस्था अपने छात्राओं में साहित्य के प्रति अभिरुचि को पैदा करने का प्रयास करती रही है। साथ ही छात्राओं के सर्वागीण विकास के लिए संस्था द्वारा समय- समय पर अनेक प्रकार की गोष्ठियों, कार्यशालाओं के साथ रचनात्मक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे वाद- विवाद प्रतियोगिता, आशु भाषण प्रतियोगिता, रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता, नाटक प्रतियोगिता, काव्य पाठ एवं लेखन प्रतियोगिता और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता इत्यादि का आयोजन करती है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य छात्राओं की रचनात्मकता को उभारने के साथ-साथ देश दुनिया के प्रतिष्ठित विद्वानों/ हस्तियों के विचारों से अवगत करवाना और उन बौद्धिक परिस्थितियों का निर्माण करना है, जिससे आगे चलकर एक भूमंडलीय भारत को दिशा मिल सके।
संस्था छात्राओं को हिंदी साहित्य के साथ-साथ रंगमंच, अनुवाद, भाषाविज्ञान, जनसंचार एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु कई कार्यक्रम आयोजित करती रहेगी। आगामी सत्र में विभाग के शिक्षकों के सहयोग से संस्था हिंदी साहित्य के विविध विषय पर पत्रिका प्रकाशिक करने का लक्ष्य तय करने के क्रम में अग्रसर है, साथ ही विभाग के साथ मिलकर अन्य साहित्यिक गतिविधियों पूर्ण करने हेतु संकल्पित है।
हिंदी साहित्य संस्था “सृजन” के पदाधिकारियों का गठन प्रत्येक वर्ष (बी.ए हिंदी विशेष) की छात्राओं द्वारा चुनाव द्वारा होता है जिसमें प्रत्येक वर्ष की छात्राएं अपने मत का प्रयोग कर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और सहसचिव का चुनाव करती हैं।